एक साहार म एक झन आदमी राहाय। ओ कहिथे- भगवान हा सब झन ल अमीर बनाए हे,
भला मुहीच ल काबर गरीब बनईस होही? मैं ये बात के निरने कराहूं तभे बनहीं। अइसे कहिके ओ हा भगवान ला खोजत-खोजत ऐती-ओती, जंगल-झाड़ी डाहार ले जावत रहिथे। रसता म ओला एक ठक गाहबर (हुंडरा) भेंटथे। हुड़रा ह पुछथे- तैं लकर-लकर काहां जात हस जी कहिके। त ओ हा अपन सबो हाल ल बताथे। त हुंड़रा कहिथे- अरे, अइसने मोरो एक ठन बात हे गा, तैं जावत हस त मोरो निरने ला भगवान मेंरन पूछ के आबे।
आदमी कहिस- का होही पूछ देहूं, का बात ये तेन ला बता? त गाहबर कहिस- सरी जंगल के बघवा-भालू, अउ जम्मो जीनावर मन बने-बने जीनिस ल पेट भर खाथें। मोला ऊंखर छोड़न-छांड़न हाड़ा-गोड़ा हा मिलथे। अइसन भेदभाव मोर संग भगवान हा काबर करे हे?
‘एक ल माई अऊ एक ला मोसी’ ये बात के जुआप ल लानबे। आदमी सुन के कहिथे- ठीक हे कही देहूं। ले अब मैं जावत हौं, अइसे कहिके आदमी राहाय तौंन हा चल देथे। रेंगत-रेंगत थक जथे। पीयास म बियाकुल हो जथे। तब ओला एक ठन नान कीन डबरी मुहा तरिया दिखथे। ओ तरिया म बने उार-निरमल काजर बरोबर पानी रहिथे। बने पेटभर सांस मार के पानी पीथे अउ मुंह-कान ल धोथे। ओतके बेरा बीच तरिया ले एक ठन मछरी निकरथे अऊ ओ आदमी ल पूछथे- तैं काहां रहिथस भईया अउ काहां जावत हस? त आदमी ह अपन जम्मो हाल-चाल ल बताथे। त मछरी कहिथे- तैं बने करे भईया आ गेस ते, मोर एक ठन समसिया हावय, मैं सोंचते रेहेंव काखर करा ये सोर ल भगवान मेंरन पहुंचावव कहिके। त ओ आदमी ह कहिथें- का होही बहिनी तोरो संदेस ल कहि देहूं, काये तेन ल बता जल्दी से।
त मछरी अपन समसिया ला बताथे- मोर पेट हा रात दिन मोठ-मोठ लागथे, मैं पीरा के मारे बाय बियाकुल रहिथों, ये दु:ख ल कतको झन ल बता डारेंव फेर कोनो येखर निदान नई कर सकीन। अब भगवाने ह मोर दु:ख ल हर सकही। त आदमी ह कहिस- ले त बइठ मैं तोर दु:ख ल भगवान मेंरन कहि देहूं। अइसे कहिके ओ आदमी ह आगू रेंगिस। रेंगत-रेंगत ओला थक लागगे। थोकिन आगू रेंग के एक ठन बड़ जबर छीता के पेंड मिलीस। ओखरे खालहे म बईठ के थोकिन सुरतईस। बने सुग्घर जुड़-जुड़ हावा फुरूर-फुरूर चलत राहाय। ओला बड़ आराम लागिस।
छीता के पेंड़वा हा ओ आदमी ल पूछिस- तैं काहां जावत हस भाई, बड़ दुरिहा ले आवत हस तइसे लागथे। तोर मुंह, कान हा कइसे झोइला गेय हे, तैं कुछु संसो म बुड़े हस तइसे लागथे। त ओ आदमी ह अपन हाल ल सुनाथे। सुनके छीता हा कीहीस भईगे रे भई, ये संसार म कोन्हों सुखी नई हे तइसे लागथे। तोर दु:ख ल सुनके मोरो एक ठन दु:ख के सुरता आगे, मोरों सोर ल भगवान मेंरन अमरा देते ते बने हो जातिस गा, कहिथें। त आदमी कीहीस- का होही, कहि देहूं भई। ले बता तोर का दु:ख हे तेन ल। त छीता ह बतईस- अतक सुग्घर के मोर पेड म आज तक ले एको बेर फर नई फरय। येखर का कारन हे तेन ल तैं भगवान मेर पूछ देते भईया अतेक तोर ले बिनती करत हौं। त ओ आदमी हा कहिस- का होईस पुछ देहूं। ले मैं जावत हौं, कहिथे चल देथें।
भगवान करा जा के अपन दु:ख ल रोवत कहिथे- हे भगवान तैं मोला ये सुसार म भेजे, बने करे, फेर मोला गरीब काबर बनाए। ‘एक लांघन दु फरहार’ मैं बहुत दु:ख भोगत हौं, महाराज! अब मोर ले साहान नई हो सकय। त भगवान हा मुसकी ढारत कहिथे- ‘अरे, तैं पगला काबर अतका दुखी होवत हस? जइसे अउ लोगन मन अपन करतव्य ले सुखी हें तइसे तहूं हो सकथस।’ मैं कहूं ल अमीर-गरीब नई बनाय हौंव रे भई। ये संसार म सब झन अपन करतव्य ले बनथे।
मैं तो करतब के फल ल देथंव। मोर बर अब झन बरोबर हैं, कोनो छोटे बडे नौ हे। तहूं ओइसने करतब कर, तहूं अमीर बन जबे।
भगवान के बात ल सुनके ओ आदमी हा फेर तिखारथे-‘मैं बड़े आदमी बन जहूं न?’ भगवान कहिके हव रे मोर असीस हे जा, कहिके भगवान हा ओखर मुरूखपन ऊपर मने मन म हांसथे। काबर कि भगवान तो अगमजानी ये। ये तो करमछड़हा मइनखे ये। ‘चलनी म दुद दुहे-करम ल दोस’ कहिथे तइसे ओ करमहीन मइनखे मन करम तो करय नहीं अऊ दूसर के करी-कमई ल देख-देख के मने मन म इरखा करथें। बिगन मेंहनत करे सब सुख मिले कहिथे।
ओ हा भगवान ला छीता फल के समसिया ला गोठियाथे। त भगवान कहिथे छीता के जरि म बड़ जबर हंडा गड़े हे। ओ हा जरी ल छेंक देये हे, तेखर सेती छीता म फर नई धरत हे। त ओ आदमी हा मछरी के दुख ल गोठियईस। त मछरी के दु:ख के कारण ल बतईस- मछरी हा भूखन मरत रीहीस, त हीरा-मोती जेवाहिरात ल पेट भर खा डारीस। काहीं पचे के जीनिस होतीस त पच जतिस ओ तो रफ-रफ ले पेटौरा म माढ़ गेये हे। जब तक कोन्हों ओखर पेट ल नई चिरहीं तब तक ओखर पेट के पीरा नई जावय। अतका बात ल सुनके ओ आदमी ह गाहबर के समसिया ल गोठियाथे। कि एक झन गाहबर हा काहात रीहीस कि जंगल के सबे जीनावर मन बने-बने खाथें-पीथें, फेर मोर भाग म हाड़ाच, गोड़ा हा मिलथे कहिके। त भगवान हा कीहीस-ओला कहि देबे तैं बने बुध लगाके परिश्रम करबे त तहूं ल बने-बने खाए-पीए ल मिलही कहिके।
सबो झन के समसिया के समाधान ल सुनके मने मन म खुसी मनावत अपन घर के रद्दा रेंगिंस। त पहिली छीताफल ल ओखर समसिया के समाधान ल बता के आगू बढ़िस। त ओला गाहबर मिलथे। ओ हा पूछथे- कइसे गा मोर समसिया बर भगवान हा का उपाय बतईस? त ओ हा मने मन खुस होवत कहिथे- ‘अरे भईया तैं अतक दिन ले अपन डिमाक अऊ अतक बड़ सांघर-मोंघर देहे पांव देये हे भगवान हा, तेखर उपयोग करे बर नई जानें अऊ दूसर के सिकार करे, जुठा काठा ल खा के अराम करेस। भगवान हा केहे हे बने अक्कल लगाके मेहनत करही त उहू ला बने-बने खाये ल मिलही कहिके।’
गाहबर ल ओ आदमी के गोठ ल सुन के आतमबोध होगे, अऊ अपन मुरूखपन ऊपर पछताइस। ओ सोंचथे इही मऊका ले मउका हे, फेर ये सिकार मोर हांत ले निकर जही। ओहा छिन भर के देरी नई करीस, ऐके झपट्टा मारीस ओ आदमी के घेंघा ल मुंह म चाब के झूलगे। ओ आदमी उही मेंर गिर के तलफ-तलफ के मरगे। गाहबर हा अराम से बइठ के ओला खाये लगिस।
आतम बोध:- करम छड़हा मइनखे मन अपन मुरूखपना अऊ आलसीपन के सेती कभू सुख नई भोगय। अपन अऊ अपन परवार ल मुसीबत म डार देथें। अपन जान ल घलौ गंवा डारथें।
बुध्दिमान अऊ परिश्रमी होतिस त मछरी के पेट ल चीर के हीरा-जेवाहिरात ल पा जतिस। बने सुख से अपन जीनगी बसर करतीस पहिली मऊका तो ओला छीताफल के जरि म हंडा हे कहिके भगवान हा ओला बतईस। फेर ओहा मेंहनत ल डेर्रा के अऊ अपन बुध्दि के उपयोग नई करीस। अतका अच्छा मऊका ल लात मार दिस। अपन कुबुध्दि के सेती गाहबर के सिकार होगे।
विट्ठल राम साहू ‘निश्छल’
भौंवहारी भाठा,महासमुन्द